सोमवार व्रत कथा

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।। सोमवार व्रत पूजा विधि ।।

भगवान शिवजी के व्रत और पूजा की विधि बहुत ही सरल और प्रभावी होती है। इसे विधिपूर्वक करने से भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है। यहाँ पर शिवजी व्रत और पूजा विधि का विस्तृत विवरण दिया गया है:

प्रारंभिक तैयारी:

  1. निर्धारण: व्रत करने का निर्णय लें और इसे नियमित रूप से करने का संकल्प लें।

  2. स्वच्छता: प्रातःकाल जल्दी उठें, स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें।

  3. पूजा स्थल की तैयारी: पूजा स्थल को स्वच्छ करें और भगवान शिव की मूर्ति या शिवलिंग स्थापित करें।

पूजन सामग्री:

गंगाजल, दूध, दही, शहद, घी, शक्कर, पुष्प (विशेषकर बेलपत्र), धूप, दीपक, फल, नैवेद्य (प्रसाद), चंदन, कुमकुम, अक्षत (चावल), रुद्राक्ष माला

पूजा विधि:

  1. आसन ग्रहण: स्वच्छ आसन पर बैठें और मन को शांत करें।

  2. संकल्प: संकल्प लें कि आप भगवान शिव की कृपा प्राप्ति हेतु व्रत और पूजा कर रहे हैं।

  3. कलश स्थापना: एक तांबे या मिट्टी के कलश में जल भरकर उसमें आम के पत्ते और नारियल रखें। यह कलश भगवान शिव के समीप रखें।

  4. अभिषेक:

    • शिवलिंग या भगवान शिव की मूर्ति पर गंगाजल, दूध, दही, शहद, घी और शक्कर से अभिषेक करें।

    • “ॐ नमः शिवाय” मंत्र का उच्चारण करते हुए अभिषेक करें।

  5. पूजन:

    • चंदन और कुमकुम से भगवान शिव का तिलक करें।

    • पुष्प और बिल्वपत्र अर्पित करें। ध्यान रखें कि बिल्वपत्र का मुख शिवलिंग की ओर हो।

    • धूप और दीप जलाएं।

    • भगवान शिव को फल और नैवेद्य अर्पित करें।

  6. मंत्र जाप: “ॐ नमः शिवाय” मंत्र का जाप करें। यह मंत्र अत्यंत प्रभावशाली है और भगवान शिव की कृपा जल्दी प्राप्त होती है।

  7. आरती:

    • “ॐ जय शिव ओंकारा” या “जय शिव ओंकारा” आरती गाएं।

    • आरती के पश्चात भक्तों के बीच आरती की थाली घुमाएं।

  8. प्रसाद वितरण: पूजा समाप्त होने के बाद भगवान शिव को अर्पित नैवेद्य (प्रसाद) सभी भक्तों में बांटें।

व्रत का पालन:

  • व्रत के दिन एक समय फलाहार करें और अन्न का सेवन न करें।

  • दिनभर शिवजी के मंत्रों का जाप और भजन-कीर्तन करें।

  • सायंकाल पुनः भगवान शिव की पूजा करें और आरती करें।

सोमवार व्रत कथा

किसी नगर में एक साहूकार रहता था। उसके घर में धन की कोई कमी नहीं थी लेकिन उसकी कोई संतान नहीं थी जिस वजह से वह बेहद दुखी था। पुत्र प्राप्ति के लिए वह भगवान शिव प्रत्येक सोमवार व्रत रखता था और पूरी श्रद्धा के साथ शिवालय में जाकर भगवान शिव और पार्वती जी की पूजा करता था। उसकी भक्ति देखकर मां पार्वती प्रसन्न हो गई और भगवान शिव से उस साहूकार की मनोकामना पूर्ण करने का निवेदन किया।

पार्वती जी की इच्छा सुनकर भगवान शिव ने कहा कि “हे पार्वती। इस संसार में हर प्राणी को उसके कर्मों के अनुसार फल मिलता है और जिसके भाग्य में जो हो उसे भोगना ही पड़ता है।” लेकिन पार्वती जी ने साहूकार की भक्ति का मान रखने के लिए उसकी मनोकामना पूर्ण करने की इच्छा जताई। माता पार्वती के आग्रह पर शिवजी ने साहूकार को पुत्र-प्राप्ति का वरदान तो दिया लेकिन साथ ही यह भी कहा कि उसके बालक की आयु केवल बारह वर्ष होगी।

माता पार्वती और भगवान शिव की इस बातचीत को साहूकार सुन रहा था। उसे ना तो इस बात की खुशी थी और ना ही गम। वह पहले की भांति शिवजी की पूजा करता रहा। कुछ समय उपरांत साहूकार के घर एक पुत्र का जन्म हुआ। जब वह बालक ग्यारह वर्ष का हुआ तो उसे पढ़ने के लिए काशी भेज दिया गया। साहूकार ने पुत्र के मामा को बुलाकर उसे बहुत सारा धन दिया और कहा कि तुम इस बालक को काशी विद्या प्राप्ति के लिए ले जाओ और मार्ग में यज्ञ कराओ। जहां भी यज्ञ कराओ वहीं पर ब्राह्मणों को भोजन कराते और दक्षिणा देते हुए जाना। दोनों मामा-भांजे इसी तरह यज्ञ कराते और ब्राह्मणों को दान-दक्षिणा देते काशी की ओर चल पड़े।

राते में एक नगर पड़ा जहां नगर के राजा की कन्या का विवाह था। लेकिन जिस राजकुमार से उसका विवाह होने वाला था वह एक आंख से काना था। राजकुमार के पिता ने अपने पुत्र के काना होने की बात को छुपाने के लिए एक चाल सोची। साहूकार के पुत्र को देखकर उसके मन में एक विचार आया। उसने सोचा क्यों न इस लड़के को दूल्हा बनाकर राजकुमारी से विवाह करा दूं। विवाह के बाद इसको धन देकर विदा कर दूंगा और राजकुमारी को अपने नगर ले जाऊंगा।

लड़के को दूल्हे का वस्त्र पहनाकर राजकुमारी से विवाह कर दिया गया। लेकिन साहूकार का पुत्र एक ईमानदार शख्स था। उसे यह बात न्यायसंगत नहीं लगी। उसने अवसर पाकर राजकुमारी की चुन्नी के पल्ले पर लिखा कि “तुम्हारा विवाह मेरे साथ हुआ है लेकिन जिस राजकुमार के संग तुम्हें भेजा जाएगा वह एक आंख से काना है। मैं तो काशी पढ़ने जा रहा हूं।” जब राजकुमारी ने चुन्नी पर लिखी बातें पढ़ी तो उसने अपने माता-पिता को यह बात बताई। राजा ने अपनी पुत्री को विदा नहीं किया जिससे बारात वापस चली गई।

दूसरी ओर साहूकार का लड़का और उसका मामा काशी पहुंचे और वहां जाकर उन्होंने यज्ञ किया। जिस दिन लड़के की आयु 12 साल की हुई उसी दिन यज्ञ रखा गया। लड़के ने अपने मामा से कहा कि मेरी तबीयत कुछ ठीक नहीं है। मामा ने कहा कि तुम अन्दर जाकर सो जाओ। शिवजी के वरदानुसार कुछ ही क्षणों में उस बालक के प्राण निकल गए। मृत भांजे को देख उसके मामा ने विलाप शुरू किया।

संयोगवश उसी समय शिवजी और माता पार्वती उधर से जा रहे थे। पार्वती ने भगवान से कहा- प्राणनाथ, मुझे इसके रोने के स्वर सहन नहीं हो रहा। आप इस व्यक्ति के कष्ट को अवश्य दूर करें| जब शिवजी मृत बालक के समीप गए तो वह बोले कि यह उसी साहूकार का पुत्र है, जिसे मैंने 12 वर्ष की आयु का वरदान दिया। अब इसकी आयु पूरी हो चुकी है। लेकिन मातृ भाव से विभोर माता पार्वती ने कहा कि हे महादेव आप इस बालक को और आयु देने की कृपा करें अन्यथा इसके वियोग में इसके माता-पिता भी तड़प-तड़प कर मर जाएंगे।

माता पार्वती के आग्रह पर भगवान शिव ने उस लड़के को जीवित होने का वरदान दिया| शिवजी की कृपा से वह लड़का जीवित हो गया। शिक्षा समाप्त करके लड़का मामा के साथ अपने नगर की ओर चल दिए। दोनों चलते हुए उसी नगर में पहुंचे, जहां उसका विवाह हुआ था। उस नगर में भी उन्होंने यज्ञ का आयोजन किया। उस लड़के के ससुर ने उसे पहचान लिया और महल में ले जाकर उसकी आवभगत की और अपनी पुत्री को विदा किया। इधर भूखे-प्यासे रहकर साहूकार और उसकी पत्नी बेटे की प्रतीक्षा कर रहे थे। उन्होंने प्रण कर रखा था कि यदि उन्हें अपने बेटे की मृत्यु का समाचार मिला तो वह भी प्राण त्याग देंगे परंतु अपने बेटे के जीवित होने का समाचार पाकर वह बेहद प्रसन्न हुए।

उसी रात भगवान शिव ने व्यापारी के स्वप्न में आकर कहा- हे श्रेष्ठी, मैंने तेरे सोमवार के व्रत करने और व्रतकथा सुनने से प्रसन्न होकर तेरे पुत्र को लम्बी आयु प्रदान की है। जो कोई सोमवार व्रत करता है या कथा सुनता और पढ़ता है उसके सभी दुख दूर होते हैं और समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

शिवजी की आरती (पूर्ण आरती) 

ओम जय शिव ओंकारा,

 स्वामी जय शिव ओंकारा।

ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव, 

अर्द्धांगी धारा॥

 ओम जय शिव ओंकारा॥

 

एकानन चतुरानन पञ्चानन राजे।

हंसासन गरूड़ासन वृषवाहन साजे॥

 ओम जय शिव ओंकारा॥

 

दो भुज चार चतुर्भुज दसभुज अति सोहे।

त्रिगुण रूप निरखत त्रिभुवन जन मोहे॥ 

ओम जय शिव ओंकारा॥

 

अक्षमाला वनमाला मुण्डमालाधारी।

त्रिपुरारी कंसारी कर माला धारी॥

 ओम जय शिव ओंकारा॥

 

श्वेताम्बर पीताम्बर बाघंबर अंगे।

सनकादिक गरुड़ादिक भूतादिक संगे॥ 

ओम जय शिव ओंकारा॥

 

कर के मध्य कमण्डल चक्र त्रिशूलधारी।

जगकर्ता जगभर्ता जगसंहारकर्ता॥ 

ओम जय शिव ओंकारा॥

 

ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका।

प्रणवाक्षर के मध्ये ये तीनों एका॥

 ओम जय शिव ओंकारा॥

 

पर्वत सोहैं पार्वती, शंकर कैलासा।

भांग धतूरे का भोजन, भस्मी में वासा॥ 

ओम जय शिव ओंकारा॥

 

जटा में गंग बहत है, गल मुण्डन माला।

शेष नाग लिपटावत, ओढ़त मृगछाला॥ 

ओम जय शिव ओंकारा॥

 

काशी में विराजे विश्वनाथ, नन्दी ब्रह्मचारी।

नित उठ दर्शन पावत, महिमा अति भारी॥ 

ओम जय शिव ओंकारा॥

 

त्रिगुणस्वामी जी की आरति जो कोइ नर गावे।

कहत शिवानन्द स्वामी, मनवान्छित फल पावे॥

ओम जय शिव ओंकारा॥ 

स्वामी ओम जय शिव ओंकारा॥ 

🙏🏻✨ हर हर महादेव! ✨ 🙏🏻

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