Siddha Kunjika Stotra: माँ दुर्गा की कृपा पाने का सर्वश्रेष्ठ उपाय

सिद्ध कुंजिका स्तोत्र हिंदू धर्म में सबसे शक्तिशाली और गुप्त स्तोत्रों में से एक है। इसे दुर्गा सप्तशती पाठ के पूर्ण लाभ प्राप्त करने का एक सरल उपाय माना जाता है। इस दिव्य स्तोत्र के पाठ से माँ दुर्गा की कृपा प्राप्त होती है और जीवन की सभी बाधाएँ दूर होती हैं।

Siddha Kunjika Stotra का महत्व (महत्वपूर्ण लाभ)

 

  • शीघ्र फल प्राप्ति – नियमित पाठ से आध्यात्मिक और भौतिक लाभ तुरंत मिलते हैं।

  • नकारात्मक ऊर्जा का नाश – बुरी शक्तियों और तंत्र-मंत्र से रक्षा करता है।

  • मनोकामना पूर्ति – व्यक्तिगत और व्यावसायिक सफलता दिलाने में सहायक।

  • माँ दुर्गा की कृपा – स्वास्थ्य, धन और समृद्धि सुनिश्चित करता है।

Durga Saptashati Kunjika Stotra

Siddha Kunjika Stotra की पाठ विधि (कैसे करें पाठ)

 

  1. सुबह या शाम का समय चुनें – शांत वातावरण में पाठ करें।

  2. शुद्ध वस्त्र धारण करें – स्वच्छता और श्रद्धा का पालन करें।

  3. दीप जलाएं – माँ दुर्गा को पुष्प और धूप अर्पित करें।

  4. श्रद्धा से पाठ करें – ध्यान और पूर्ण समर्पण के साथ स्तोत्र पढ़ें।

Siddha Kunjika Stotra (संस्कृत श्लोक एवं अर्थ)

॥सिद्धकुञ्जिकास्तोत्रम्॥

 

शिव उवाच
शृणु देवि प्रवक्ष्यामि, कुञ्जिकास्तोत्रमुत्तमम्।
येन मन्त्रप्रभावेण चण्डीजापः शुभो भवेत॥१॥
न कवचं नार्गलास्तोत्रं कीलकं न रहस्यकम्।
न सूक्तं नापि ध्यानं च न न्यासो न च वार्चनम्॥२॥
कुञ्जिकापाठमात्रेण दुर्गापाठफलं लभेत्।
अति गुह्यतरं देवि देवानामपि दुर्लभम्॥३॥
गोपनीयं प्रयत्नेन स्वयोनिरिव पार्वति।
मारणं मोहनं वश्यं स्तम्भनोच्चाटनादिकम्।
पाठमात्रेण संसिद्ध्येत् कुञ्जिकास्तोत्रमुत्तमम्॥४॥
॥अथ मन्त्रः॥
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे। ॐ ग्लौ हुं क्लीं जूं स:
ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल
ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा।”
॥इति मन्त्रः॥
नमस्ते रूद्ररूपिण्यै नमस्ते मधुमर्दिनि।
नमः कैटभहारिण्यै नमस्ते महिषार्दिनि॥१॥
नमस्ते शुम्भहन्त्र्यै च निशुम्भासुरघातिनि॥२॥
जाग्रतं हि महादेवि जपं सिद्धं कुरूष्व मे।
ऐंकारी सृष्टिरूपायै ह्रींकारी प्रतिपालिका॥३॥
 
क्लींकारी कामरूपिण्यै बीजरूपे नमोऽस्तु ते।
चामुण्डा चण्डघाती च यैकारी वरदायिनी॥४॥
विच्चे चाभयदा नित्यं नमस्ते मन्त्ररूपिणि॥५॥
धां धीं धूं धूर्जटेः पत्नी वां वीं वूं वागधीश्वरी।
क्रां क्रीं क्रूं कालिका देवि शां शीं शूं मे शुभं कुरु॥६॥
हुं हुं हुंकाररूपिण्यै जं जं जं जम्भनादिनी।
भ्रां भ्रीं भ्रूं भैरवी भद्रे भवान्यै ते नमो नमः॥७॥
अं कं चं टं तं पं यं शं वीं दुं ऐं वीं हं क्षं
धिजाग्रं धिजाग्रं त्रोटय त्रोटय दीप्तं कुरु कुरु स्वाहा॥
पां पीं पूं पार्वती पूर्णा खां खीं खूं खेचरी तथा॥८॥
सां सीं सूं सप्तशती देव्या मन्त्रसिद्धिं कुरुष्व मे॥
इदं तु कुञ्जिकास्तोत्रं मन्त्रजागर्तिहेतवे।
अभक्ते नैव दातव्यं गोपितं रक्ष पार्वति॥
यस्तु कुञ्जिकाया देवि हीनां सप्तशतीं पठेत्।
न तस्य जायते सिद्धिररण्ये रोदनं यथा॥
इति श्रीरुद्रयामले गौरीतन्त्रे शिवपार्वतीसंवादे कुञ्जिकास्तोत्रं सम्पूर्णम्।
॥ॐ तत्सत्॥

 

कुंजिका स्तोत्र अर्थ (Meaning) –

 

शिव जी बोले-
देवी ! सुनो। मैं उत्तम कुंजिका स्तोत्र का उपदेश करूँगा, जिस मंत्र के प्रभाव से देवी का जप (पाठ) सफल होता है ॥१॥

कवच, अर्गला, कीलक, रहस्य, सूत्रत, ध्यान, न्यास यहाँ तक कि अर्चन भी आवश्यक नहीं है ॥२॥

केवल कुंजिका के पाठ से दुर्गापाठ का फल प्राप्त हो जाता है। ( यह कुंजिका ) अत्यंत गुप्त और देवों के लिए भी दुर्लभ है ॥३॥

हे पार्वती ! स्वयं की भांति प्रयत्नपूर्वक गुप्त रखना चाहिए। यह उत्तम कुंजिका स्तोत्र केवल पाठ के द्वारा मारण, मोहन, वशीकरण, सम्मन और उच्चाटन आदि (अभिचारिक) उद्देश्यों को सिद्ध करता है ॥४॥

मन्त्र – ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे। ॐ ग्लौं हूं क्लीं जूं सः। ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं संल हं फट स्वाहा ॥

(मंत्र में आए बीजों का अर्थ जानना न संभव है, न आवश्यक और न ही वांछनीय (Desirable)। केवल जप पर्याप्त है।)

हे रूद्ररूपिणी ! तुम्हे नमस्कार। हे मधु कैटभ को मारने वाली ! तुम्हे नमस्कार है। महिषासुर को मारने वाली देवी ! तुम्हे नमस्कार है ॥५॥

शुम्भ का हनन करने वाली और निशुम्भ को मारने वाली ! तुम्हे नमस्कार है ॥६॥

हे महादेवी ! मेरे जप को जाग्रत और सिद्ध करो। ‘ऐंकार’ के रूप में सृष्टिरूपिणी, ‘ह्रीं’ के रूप में सृष्टि का पालन करने वाली ॥७॥

क्लीं के रूप में कामरूपिणी (तथा अखिल ब्रह्मांड) की बीजरूपिणी देवी ! तुम्हे नमस्कार है। चामुंडा के रूप में तुम चण्डविनाशिनी और ‘ऐंकार’ के रूप में वर देने वाली हो ॥८॥

‘विच्चे’ रूप में तुम नित्य ही अभय देती हो। (इस प्रकार ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे) तुम इस मंत्र का स्वरूप हो ॥९॥

‘धां धीं धूं’ के रूप में धूर्तति (शिव) की तुम पत्नी हो। ‘वां वीं वूं’ के रूप में तुम वाणी की अधीश्वरी हो। ‘क्रां क्रीं क्रूं’ के रूप में तुम कालिकादेवी, ‘शां शीं शूं’ के रूप में मेरा कल्याण करो ॥१०॥

‘हुं हुं हुंकार’ स्वरूपिणी, ‘जं जं जं’ जन्मनादिनी, ‘भां भीं भ्रूं’ के रूप में हे कल्याणकारी भैरवी भवानी ! तुम्हे बार बार प्रणाम ॥११॥

‘अं कं चं टं तं पं यं शं वीं दुं’ ऐं ह्रीं क्षं धिजाग्रं धिजाग्रं’ इन सबको तोड़ो और दीप करो, करो स्वाहा। ‘पां पीं पूं’ के रूप में तुम पार्वती पूर्णा हो। ‘खां खीं खूं’ के रूप में तुम खेचरी (आकाशचारीणी) अथवा खेचरी मुद्रा हो ॥१२॥

‘सां सीं सूं’ स्वरूपिणी सप्तशती देवी के मन्त्र को मेरे लिए सिद्ध करो। यह सिद्ध कुंजिका स्तोत्र मन्त्र को जगाने के लिए है। इसे भक्ति हीन पुरुष को नहीं देना चाहिए। हे पार्वती ! इस मंत्र को गुप्त रखो। हे देवी ! जो बिना कुंजिका के सप्तशती का पाठ करता है उसे उसी प्रकार सिद्धि नहीं मिलती जिस प्रकार वन में रोना निरर्थक होता है।

(इस प्रकार श्रीरुद्रयामल के गौरीतंत्र में शिव पार्वती संवाद में सिद्ध कुंजिका स्तोत्र सम्पूर्ण हुआ।)

Siddha Kunjika Stotra के लाभ (अद्भुत फायदे)

  1. शीघ्र सिद्धि प्राप्ति – यह स्तोत्र जल्दी ही सिद्धि देता है।

  2. शत्रु बाधा से मुक्ति – दुश्मनों से रक्षा करता है।

  3. धन, वैभव और सफलता – आर्थिक उन्नति और सफलता लाता है।

  4. स्वास्थ्य लाभ – रोगों से मुक्ति दिलाता है।

  5. दैवीय कृपा – भक्त को माँ दुर्गा के दिव्य आशीर्वाद से जोड़ता है।

Conclusion (निष्कर्ष)

सिद्ध कुंजिका स्तोत्र एक अत्यंत प्रभावशाली मंत्र है जो दैवीय कृपा, सफलता और सुरक्षा प्रदान करता है। यदि आप आध्यात्मिक और भौतिक लाभ प्राप्त करना चाहते हैं, तो इस स्तोत्र का नियमित पाठ अवश्य करें। इससे माँ दुर्गा की कृपा प्राप्त होती है और जीवन की सभी बाधाएँ समाप्त होती हैं।

🙏 जय माता दी! (Jai Mata Di!) 🙏

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